क्या आप जानते हो शिवपुराण के बारेमे ?
इस पुराण भगवान शिव के लीलाओं और उनके महात्मय से भरा पड़ा है। इसीलिए इस पुराण को शिव पुराण कहते है। भगवान शिव को पापों का नाश करने वाले देव् है। तथा भगवान् शिव बड़े ही सरल स्वभाव के हैं। इसीलिए उनका एक नाम भोलेनाथ भी है। अपने नाम के ही अनुसार भगवान शिव बड़े ही भोले भाले और शीघ्र ही अपने भक्तों पर प्रसन्न होने वाले देवता हैं। भगवान शिव कम समय में ही अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उन्हें मनवांछित फल प्रदान करते हैं। दोस्तों शिव पुराण में 24000 श्लोक हैं। इस पुराण में भगवान शिव की महानता और उनसे संबंधित घटनाओं को संकलित किया गया है। इस ग्रंथ को वायुपुराण भी कहा जाता है। इस पुराण में 12 संहितायें हैं। शिव का अर्थ होता है कल्याण।
शिव पुराण के 12 संहिताओं के नाम हैं।
1. विघ्नेश्वर संहिता
2. रौद्र संहिता
3. वैनायक संहिता
4. भौम संहिता
5. मात्र संहिता
6. रूद्रएकादश संहिता
7. कैलाश संहिता
8. शत् रूद्र संहिता
9. कोटि रूद्र संहित
10. सहस्र कोटि रूद्र संहिता
11. वायवीय संहिता
12. धर्म संहिता
एक बार जब जल में नारायण शयन कर रहे थे, तभी उनकी नाभि से एक सुंदर और विशाल कमल प्रकट हुआ। उस कमल से ब्रह्मा जी की जन्म (उत्पत्ति) हुआ। माया के वश में होने के कारण ब्रह्माजी अपनी उत्पत्ति का कारण नहीं जान सके। उन्हें चारों ओर जल ही जल दिखाई पड़ा। तब उन्होंने एक आकाशवाणी सुनी… आकाशवाणी ने उनसे कहा कि तुम तपस्या करो। लेकिन माया के वश में ब्रह्माजी श्री हरि विष्णु जी के स्वरूप को ना जानकर उनसे युद्ध करने लगे। तब ब्रह्मा जी और विष्णु जी के विवाद को शांत करने के लिए एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग प्रकट हुआ। दोनों देव बड़े आश्चर्य होकर इस दिव्य ज्योतिर्लिंग को देखते रहे। और देखते ही देखते उस ज्योतिर्लिंग का स्वरूप जानने के लिए ब्रह्मा जी ने अपना स्वरूप हंस का बनाकर ऊपर की ओर, और भगवान विष्णु वराह का स्वरूप धारण कर नीचे की ओर चले गए। लेकिन दोनों देवों को इस दिव्य ज्योतिर्लिंग के आदि और अंत का पता नहीं चल सका।
इस प्रकार ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु को इस दिव्य ज्योतिर्लिंग का आदि और अंत ढूंढने में सौ वर्ष बीत गए। इसके पश्चात उस दिव्य ज्योतिर्लिंग से उन्हें ‘ओमकार’ का शब्द सुनाई पड़ा। और उस ज्योतिर्लिंग में पंचमुखी एक मूर्ति दिखाई पड़ी… यही भगवान शिव थे। ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने उन्हें प्रणाम किया। तब भगवान शिव ने कहा तुम दोनों मेरे ही अंश से उत्पन्न हुए हो। और फिर भगवान शिव ने ब्रह्मा जी को सृष्टि की रचना, भगवान विष्णु को सृष्टि का पालन करने की जिम्मेदारी प्रदान की। शिव पुराण में 24000 श्लोक हैं। इस पुराण में तारकासुर वध, मदन दाह, पार्वती जी की तपस्या, शिव पार्वती विवाह, कार्तिकेय का जन्म, त्रिपुर का वध, केतकी के पुष्प शिव पुजा में निषेद्य, रावण की शिव-भक्ति आदि प्रसंग वर्णित किये गए हैं।
भगवान शिव पूजा से अपने भक्तों पर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते हैं। कहा जाता है भगवान शिव अपने भक्तों को कष्ट में नहीं देख सकते, और तुरंत ही अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उसे अभीष्ट फल प्रदान करते हैं। भगवान शंकर का ही एक नाम नीलकंठ महादेव है। जब एक बार देवता और असुर लोगों ने मिलकर समुद्र से अमृत प्राप्ति के लिए उसका मंथन किया। तो सबसे पहले समुन्द्र से भयंकर विश निकला।जिससे समस्त देवता, दानव-मानव, सभी झुलसने लगे। तब भगवान देवा दी देव महादेव शिव शंकर ने ही प्राणियों एवं जीव-जगत की रक्षा हेतु उस भयानक विश को अपने कंठ में धारण कर लिया। दोस्तों तब से भगवान शंकर का एक नाम नीलकण्ठ महादेव पड़ गया।
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